Sunday, August 14, 2011

कविता

 गजब की बाँसुरी बजती थी,वृन्दावन बसैया की |
         करुँ तारीफ मुरली की या मुरलीधर कन्हैया की ||
          जहाँ चलता था न कुछ काम तीर और कमानों से |
            विजय नटवर की होती थी,वहाँ मुरली की तानों से ||

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