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अमृत बचन
Wednesday, July 4, 2012
न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचित् रिपुः।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते मित्राणि रुपवस्तथा ॥
न त कोई कसैको मित्र हुन्छ र न कोई कसैको शत्रु, परिस्थितीले गर्दा नै व्यक्ति लाइ मित्र अथवा शत्रु बनाउन विवश गर्दछ ॥
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